शनिवार, 31 मार्च 2012

ना कभी ऐसी कयामत करना

 प्रस्तुत है एक रचना जो आशा है कि आप को अवश्य पसन्द आयेगी :-

ना कभी ऐसी कयामत करना।
यार बनकर तू दगा मत करना।

जब यकीं तुमपे कोई भी कर ले,
ना अमानत में ख़यानत करना।

दूसरों की नज़र
तुम देखो,
अपनी नज़रों में गिरा मत करना।

प्यार तुमको मिले जिससे यारों,
तुम कभी उससे जफ़ा मत करना।

वो जो दुश्मन तेरे अपनों का हो,
मिलना चाहे तो मिला मत करना।

जिसके दामन में तेरे आंसू गिरें,
 
तू कभी उसको ख़फ़ा मत करना।

मंगलवार, 13 मार्च 2012

औरों से तो झूठ कहोगे

 प्रस्तुत है एक आत्मविश्लेषणात्मक ग़ज़ल ( बहर  :-फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फा )  :-

औरों से तो झूठ कहोगे, ख़ुद को क्या समझाओगे।
तनहाई में जब तुम ख़ुद से, अपनी बात चलाओगे।

झूठ, फरेब, दगाबाजी, नफरत, बेइमानी, मक्कारी,
करते हो, छलते हो सबको; पर कबतक छल पाओगे।

कुछ लम्हें ऐसे आते हैं, इन्सां जब पछताता है,
ऐसे लम्हें जब आयेंगे, तुम भी बहुत पछताओगे।

जीने की खातिर दुनिया में, तुम ये करते हो माना,
लेकिन औरों को दुख देकर, क्या सुख से जी पाओगे।

चोट किसी को देते हो खुश होते हो लेकिन सुन लो,
खुश ज्यादा होओगे किसी के, चोट को जब सहलाओगे।

जान बचाने में जो सुख है, कोई कातिल क्या जाने,
तुम ये ‘अनघ’ करके देखो तो, एक नया सुख पाओगे।

सोमवार, 5 मार्च 2012

ग़ज़ल/सारे बन्धन वो तोड़कर निकला

सभी ब्लागर साथियों को नमस्कार ! बहुत दिन हुए मैनें अपने ब्लाग पर लगातार कुछ नहीं लिखा। लीजिए प्रस्तुत है एक ग़ज़ल ( बहर  :-  फाइलातुन मफाइलुन फेलुन )  ....

सारे बन्धन वो तोड़कर निकला।
दर्द से मेरे बेखबर निकला ।

 
मैं लुटा तो मगर ये रंज मुझे,
लूटने वाला हमसफर निकला।

 
वक्त ने भी दिया दगा मुझको,
प्यार का वक्त मुक्तसर निकला ।

 
दूसरा कोई रास्ता ही नहीं,
अश्क ये आँख की डगर निकला।
 
ये शिकायत तेरे 'अनघ' से है,
बेवफाई की राह पर निकला।
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