शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

मुझे तनहाइयां भाती नहीं है

मुझे तनहाइयां भाती नहीं हैं। 
मैं तन्हा हूँ तू क्यों आती नहीं है।

तुझे ना देख लें जबतक ये नज़रें,
सुकूं पल भर भी ये पाती नहीं है।

गये हो दूर तुम जबसे यहाँ से,
बहारें भी यहाँ आती नहीं है।

तराने गूंजते थे कल तुम्हारे,
वहाँ कोयल भी अब गाती नहीं है।

तुझे अपना बनाना चाहता था,
कसक दिल की अभी जाती नहीं है।

शिकायत है ‘अनघ’ किस्मत से अपने,
मुझे ये तुमसे मिलवाती नहीं है।

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12 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे तनहाइयां भाती नहीं हैं।
    मैं तन्हा हूँ तू क्यों आती नही है।

    तुझे ना देख लें जबतक ये नज़रें,
    सुकूं पल भर भी ये पाती नहीं है।
    Bahut badhiyaa !

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  2. बहुत रोमांटिक रचना लिखी आप ने धन्यवाद

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  3. mujhe tanhai bhati nahi .............gustakhi maaf kariyega sahab lekin apke shabd shayad tanahiyon se vasta rakhti hain waise aapki rachna marmsparshi hain bahut khoob dil ko chhu gayi......aapka anuj

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  4. वाह..वाह...वाह, आपने इतनी शानदार गजल पेश की है कि इसके सिवा कुछ और कहने का मन ही नहीं कर रहा है. बधाई.

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  5. तराने गूंजते थे कल तुम्हारे,
    वहाँ कोयल भी अब गाती नही है।
    हमेशा की तरह सदाबहार ग़ज़ल. वाह!

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  6. 'तराने गूंजते थे कल तुम्हारे,
    वहाँ कोयल भी अब गाती नही है।'
    - बहुत सुन्दर.

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  7. तराने गूंजते थे कल तुम्हारे,
    वहाँ कोयल भी अब गाती नही है।

    गज़ल के अशआर बहुत खूबसूरत हैं।
    बधाई!

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  8. तराने गूंजते थे कल तुम्हारे,
    वहाँ कोयल भी अब गाती नही है।

    तुझे अपना बनाना चाहता था,
    कसक दिल की अभी जाती नही है।

    VAAK KAMAAL KI GAZAL HAI ...... AAPKI KALAM MEIN BAHOOT DAM HAI ... SAB SHER KHOOBSOORAT HAIN ....

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  9. सुप्रभातम्‌ चतुर्वेदी जी.
    हर पंक्तियां (शायद इन्हे अशआर कहते हैं) ही अपने आप में पूर्ण हैं, उनमें भी यह पंक्ति कुछ ज्यादा ही कसक देती है-
    "शिकायत है यही किस्मत से अपने,
    मुझे ये तुमसे मिलवाती नही है।"

    अस्तु, मेरे ब्लॉग पर आने हेतु और टिप्पणी रूपी आशीर्वाद से नवाजने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद आपका.

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  10. शिकायत है यही किस्मत से अपने,
    मुझे ये तुमसे मिलवाती नही है।

    वाह! यह ग़ज़ल भी बड़ी सरलता से सब कुछ कह गयी. प्रियसी की जुदाई में बेबसी और हताशा का खूब बखान किया है.

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