मंगलवार, 30 जून 2009

गीत/ हर रोज़ कुआँ खोदना

हर रोज़ कुआँ खोदना फ़िर प्यास बुझाना ,
ये ज़िन्दगी है ज़िन्दगी या एक सजा है।
जाना जहाँ से फिर वही वापस भी लौटना,
ये ज़िन्दगी है ज़िन्दगी या एक सजा है।

ज्यूं हर खुशी के घर का पता भूल गया हूँ,
मैं मुद्दतों से खुल के हंसना भूल गया हूँ,
रोना,तरसना छोटी-छोटी चीज के लिए,
ये ज़िन्दगी है ज़िन्दगी या एक सजा है।

हर सुबह को जाते हैं और शाम को आते,
हर रोज़ एक जैसा वक्त हम तो बिताते,
जीवन में नया कुछ नहीं इक बोझ सा ढोना,
ये ज़िन्दगी है ज़िन्दगी या एक सजा है।

बस पेट के लिये ही जिए जा रहे हैं हम,
कुछ और नहीं कर सके इस बात का है ग़म,
कुछ दे सके हम नया तो खुद ही सोचना,
ये ज़िन्दगी है ज़िन्दगी या एक सजा है।

12 टिप्‍पणियां:

  1. ज़िन्दगी की भाग-दौड़ और मजबूरियों का सटीक चित्रण....शुभकामनाएं....

    साभार
    हमसफ़र यादों का.......

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  2. बहुत सुंदर भाव लिये है आप की कविता.
    धन्यवाद

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  3. कबीरा पर आगमन का आभारी हूँ |
    आप का ब्लॉग देखा एवं आप की क्षमताओं की सामर्थ्य से मन तो बड़ा प्रसन्न हुआ परन्तु निराशा के स्वर की प्रधानता देख पीडा पहुंची | मेरा तो एकान्तिक जीवन रहा है परन्तु एक संगीतज्ञ के स्वर ऐसी निराश? नहीं मित्र नहीं आप की शुरुआत बड़ी सुन्दर और उत्साहजनक रही है ये उदासिया आप के लिए नहीं है | आप देखेंगे मेरे आकाश पर एकान्तिक विस्तार तो है पर निराशा के स्वर नहीं आप की रचनाओं से ही लगा की आप में बहुयामी क्षमता है ,मेरा अनुरोध है इसे ऐसे लें :

    यूँ निराश न होईए ,
    वक्त के साज पर,
    उम्मीदों की धुन बजाईये ;
    गर न मिलें बड़ी ख्वाहिशें,
    औरों की खुशियों पे खिलाखिलईये,
    बस हंसिये- हँसाईए और मुस्कुराईये||


    इसे मित्र अन्यथा न लें , यह एक मित्र को दूसरे मित्र की सलाह है | हाँ कभी-कभी ज़िन्दगी की जद्दोज़हद में थक कर ऐसे स्वर निकल जाएँ तो कोई बात नही \
    अपना गुब्बार निकाल
    थकन मिटा ,कुछ सुस्ता,
    तरोतजा हो फिर निकाल पड़,
    उम्मीदों के गीत नए गाने को ||

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  4. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है ये भी ज़िन्दगी का एक रंग है और हर रंग को जीना है अगे बढते जाना है आभार्

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  5. rachana bahut sundar hai .zingagi ko saza ke roop me na lekar isme aasha ke deep jalaye .jitni umra likhawa kar aaye hai wo to har haal me jeena hai .kuchh pal ,din saza ki tarah jaroor hote hai magar saari nahi .

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  6. हर सुबह को जाते हैं और शाम को आते,
    हर रोज़ एक जैसा वक्त हम तो बिताते....

    Bahut khub likha hai.

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  7. छोटी छोटी बातों पर खुश हो कर जिन्दगी सजा नहीं मजा देती है. यही बात मैंने अपनी नयी पोस्ट में बताने की कोशिश की है.

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  8. बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई!

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  9. मित्र
    मैं पहले भी टिप्पणी कर गया हूँ , उसमें आप की इस कविता के निराशावादी स्वर पर अपत्ति की थी ,बाद में मुझे लगा की मेरे शब्द शायद ज्यादा कठोर हो गए थे यदि आप को ऐसा लगा हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ \ परन्तु विचार मेरे उसी समय के यथावतहैं |

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  10. रचना पसन्द करने के लिये आप सभी का धन्यवाद...
    Blogger ''ANYONAASTI '' {अन्योनास्ति} जी,
    मैं कतई निराशावादी नहीं हूँ।आप जानते हैं मैं प्रसन्न वदन हूँ,हाँ कभी-कभी परेशान जरूर होता हूँ लेकिन अपने उस समय को भी मैं जाया नहीं होने देता बल्कि उस समय से कुछ ऐसी रचनाओं का प्रादुर्भाव हो जाता है जो सामान्य स्थिति में कभी संभव नहीं होता।मेरी बहुत सी रचनाएं इसी वजह से हर आम आदमी की अपनी बात लगती है क्योंकि वह सिर्फ़ सोचकर लिखी गयी नहीं है,वरन उसमें कुछ वास्तविकता भी है....[हाँ हर रोमांटिक रचना पर ये बात लागू नहीं होती;केवल कुछ पर ही].सच पूछिये तो मैं अपने कठिन दौर को अपने किसी रचना के लिये आया हुआ मान लेता हूँ और मैं गीत-ग़ज़ल गाते हुए अपना वह समय भी गुजार लेता हूँ...आपको कई ऐसी रचनाएं आगे भी मिलेंगी,जो ऐसे वक्त की धरोहर हैं और शायद ऐसा वक्त न आता तो ये रचनाएं भी नहीं होती........
    आपने मुझे अपना समझकर मित्रवत सलाह दी,इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद.....

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  11. jeevan ki trasad paristhitiyon me manodasha ki sarthak sateek abhivyakti ki hai aapne....sundar rachna ke liye aabhar.

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